पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/२५५

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[ स्वागता छद ]
विप्र बालकन की सुनि बानी ।
क्रुद्ध सूरसुत भो अभिमानी ॥२५२॥
सुग्रीव--विप्र-पुत्र तुम सीस सँभारौ ।
राखि लेहि अब ताहि पुकारौ ॥२५३॥
[ गौरी छद ]
लव--सुग्रीव कहा तुमसों रन माडौ ।
तो अति कायर जानि कै छाँडौं ॥
बालि तुम्हैं बहु नाच नचायो ।
कहा रन मडन मोसन आयो ॥२५४॥
[ तारक छद ]
फलहीन सो ताकहँ बान चलायो ।
अति वात भ्रम्यो बहुधा मुरझायो ॥
तब दौरि कै बान बिभीषन लीन्हों ।
लव ताहि विलोकतही हँसि दीन्हों ॥२५५॥
[ सुदरी छंद ]
आउ विभीषन तू रनदूषन ।
एक तुहीं कुल को किलभूषन ॥
जूझ जुरे जे भले भय जी के ।
शत्रुहि आइ मिले तुम नीके ॥२५६॥