पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/३५

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कार्य-प्रणाली आदि सब कुछ समझने-समझाने का काम वैकुठ ही मे कर लेते। मनुष्य-शरीर धारण कर लेने पर-आदर्श चाहे कितना ही ऊँचा हो-व्यवहार तो मनुष्य ही जैसा करना चाहिए था। ___केशव की बुद्धि प्रखर है और दरबारी होने के कारण उनका वाग्वैदग्ध्य ऊँचे दरजे का। रामचद्रिका सुदर और सजीव वार्तालापों से भरी हुई है। लक्ष्मण-परशुराम-सवाद, अंगद-रावण-सवाद, लव-विभीषण-सवाद, सब एक से एक बढकर हैं। व्यजनाएँ कई स्थानों पर बहुत अच्छी हुई हैं पर वस्तु या अलकार की, भाव की नहीं- कैसे बँधायो ? जो सुदरि तेरी छुई हग सोवत पातक लेखो। ___ मैंने ( हनुमान ने ) तेरी सोती हुई स्त्री को देखा भर था इस पाप से बाँधा गया हूँ परतु तेरी (रावण की) क्या दशा होगी जो पराई स्त्री को पाप-बुद्धि से हर लाया है; यह व्यजित है। 'है कहाँ वह वीर ?' अ गद देवलोक बताइयो। 'क्यों गयो ?' 'रघुनाथ बान विमान बैठि सिधाइयो' ॥ __ बालि राम के बाणरूप विमान पर चढ़कर स्वर्ग चला गया। इससे यह व्यजित हुआ कि तुम भी राम से वैर कर स्वर्ग जाना चाहते हो। नए और लोकोपकारी विचारों की भी उन्होंने खूब उद्भावना की है। इसका सबसे अच्छा एक उदाहरण उस लथाड में है जो उन्होंने लव के मुँह से विभीषण को दिलाई .