पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/५६

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फूलि फूलि तरु , फूल बढ़ावत । मोदत', महा मोद उपजावत । उड़त पुराग न, चित्त उडावत । भ्रमर भ्रमत नहिं, जीव भ्रमावत ॥१९॥

[पादाकुलक छद]

शुभ सर शोभै । मुनिमन लोभै । सरसिज फूले । अलि रस भूले ।। __ जलचर डोलैं । बहु खग बोले । ' बरणि न जाहीं । उर अरुझाहीं ॥२०॥

[हाकलिका छद]

संग लिये ऋषि शिष्यन घने । पावक से तपतेजनि सने । देखत सरिता उपवन भले । देखन अवधपुरी कहँ चले ॥२१॥

अवधपुरी-वर्णन
[मधुभार छंद]

.... ऊंचे अवास । बहु ध्वज प्रकास । सोभा विलास । सोभै अकास ||२२॥ .

[आभीर छंद]

__अति सुंदर अति साधु । थिर न रहत पल आधु । "परम तपोमय , मानि । दड, धारिनी जानि ॥२३॥ (१) मोदत = महकते हुए।