पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/६७

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email विमति- सो०] राजराजदिंगबाम , भाल लाल लोभी सदा । ५ . ___अति प्रसिद्ध जग नाम, कासमीर को तिलक यह ॥७२॥ सुमति-दो०] निज प्रताप-दिनकर करत, लोचन-कमल प्रकास ।" ___ पान •खात मुसुकात मृदु, को यह केशवदास ? ॥७॥ . विमति-सो०] नृप माणिक्य सुदेश, दक्षिण तिय जिय भावतो । कटितट सुपट सुवेश, कल काची शुभ मडई ॥७४।। 'सुमति-दो०] कुडल परसन मिस कहत, कहा कौन यह राज । शंभुशरासन गुन करौ, करनालबित आज ॥७॥ विमति- सो०] जानहिं बुद्धिनिधान, मत्स्यराज यहि राज को।। समर । समुद्र समान, जानत सब अवगाहि के ॥७६॥ सुमति-[दो०] अंगराग-रंजित,रुचिर, भूषण-भूषित देह । र कहत बिदूषक सो कछू, सो पुनि को नृप येह ? ॥७॥ विमति- सो० चंदनचित्रतरग') सिंधुराज यह जानिए । ० . बहुत वाहिनी संग, मुक्तामाल विशाल उर ॥७॥ दो०] सिगरे राज समाज के, कहे गोत्र गुण ग्राम । देश सुभाव प्रभाव अरु, कुल बल विक्रम नाम ॥७९॥ (१) राजराज = कुवेर । (२) कासमीर = काश्मीर देश केसर। (३) काची = काचीपुरी; करधनी। (४) मत्स्यराज = मत्स्यदेश का राजा; मछलियों का राजा। (५) चदनचित्रतरग = जिसके शरीर पर चदन की तरगे सी चित्रित हैं, जिसकी तरगे चदन सें चित्रित हैं। (६) सिंधुराज = सिंधु देश का गज़ा; महासागर । (७) वाहिनी - सेना; नदी। (८) मुक्कामाल = मोतियों की माला, मोतियो का समूह ।