पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/११२

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१६ रामस्वयं पर। वस्तु विरानी को पूछे विना रघुराजजू लेख न वेद उचारन॥५३४।। राम के चैन अराम को पालक कान परे गृह बाहर आयो । देखि अनूपम भूपकुमार रह्यो तकिकै पलक न लगायो । पार्यन में परि पानि को जोरि पग्यो प्रभु प्रेम सु वैन सुनायो । श्रीरघुराज जू रावरोवागन बायरो मोहि विरंचि बनायो॥३५॥ वाटिका में जुग गजकुमार निहारत फूलन तोरत यागें । दोना लिये अति लोना उभै कर छोना मृगेस से जोवन जाग। कोसलभूप के बांकुरे वीर कहै रघुराज लता अनुराग। फूलै फलें तरु ताही छनै हरि कोमल कौल करें जहं लागें ॥५३६॥ कहुं लेत प्रसून प्रमोद भरे ललिते लतिकान के झोरन में। कहुं कुंजन में विसराम करें अवनीलह छाँह के छोरन में । वर वाटिका ठौरन ठौरन में - रघुराज लखें चहुं ओरन में । चितचोरन राजकिसोरन की मन लागि रह्यो सुभ तोरन में । दोहा। चित चोरत तोरत कुसुम, इत अवधेसकिसोर । उत विदेह रनिवास में, कियो पुरोहित सोर ॥५३८॥ - राम-सीता-मिलन । ' [चौपाई सतानंद तिहि वचन उचारा । काल्हि स्वयंवर होवनहारा ॥ ताते आजु जानका जाई । करै गौरि-पूजन चित चाई ॥५३६॥ सुनंत पुरोहित को बर वानी । मैथिल महाराज महरानी ॥ सखिन बोलि सर्वसाजु सजाई । गिरिजा पूजन सियहिं पठाई।