पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/१२२

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रामस्वयंबर। लेत लख्यो कौतुक महान है । भने रघुराज आई जनकदुलारी , तहां पूजन के काज गौरी सहित इसान है। सखिन समाज देख्यो विभवदराज आज ऐसोनाउमाकोनारमाकोसुन्यो कान है ५६६ (दोहा) . सकल जानि मुनि जोगवल, रामहि दियो असीस । होइ मनोरथ पूर तव, कृपा करहिं जगदीस ॥६००॥ • विश्वामित्र विलोकि तह, अलसाने कछु नैन। . कह्यौ लाल कीजै सयन, बैठन अवसर है न॥६०१॥ सुनि मुनि-सासन वंधु दोउ, किये सयन सुख पाय । । स्वपन्याहूं में सिय सुरति, विसरै नहि विसराय ॥६०२॥ उतै सीय गै गौरि-गृह, राजकुवर धरि ध्यान । जोरि पानि पंकज करी, नति तति वेद विधान ॥६०३॥ सुनत जानकी के बचन, प्रगट भई तव गोरि। फरि प्रनाम मन हँसि कह्यो, देविन की सिरमोरि ॥६०४६ (चौपाई ) सकल कामना पूरन होई । जो मन माह मिलिहि पर सोई॥ अस कहि दीनी माल भवानी । जनु पूजी ठकुराइनि जानी। मुख प्रसन्न सिय कोसखि देखी। कारज-सिद्धि सत्य मन लेखो। चढ़ी नालकी सोय सुहाई । मंद मंद गवनी सुख छाई ।। धाजन बाजि उठे यक वारा।योलहिं सखी नकीव अपारा । चली हजारन सँग सुकुमारी । कहै जयति मिथिलेस-दुलारी। यहि बिधि गौरि पूजि करि नेहू । गई जानकी जननी-गेह।