पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/१३६

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रामस्वयंबर। (सवैया ) हे करुणाकर संभु सुजान करी तुम्हरी अवलौं सेवकाई । आय परयो अब काम सुई परिपूरन कीजिये मोरि सहाई। श्रीरघुराज के पंकज पानि तिहारे सरासन की गुरुताई। भूलते पुनि फूड ते तिमि तूलते न ल अधिकाई ६६५ (दोहा) मनहिं मनावति जानको गौरी गनेस पुरारि । देखि राम-शोभा सुखद यकटक रही निहारि । ६६६॥ . भरे थिलोचन प्रेमजल पुलकावली सरीर। . निरखि अवनि पुनि पितु जननि पुनि निरखतिरघुवीर ६६७ तहं तिहि छन लिय के हिरे जो दुख होत महान । तौन मानुकुल-भानु सब जानत राम सुजान ।। ६६८ ॥ सकल महीपन के लखत चाप समीपहि जाय । अचल नीलमनि अंगमम ठाढ़े सहज सुभाय ॥ ६ ॥ सहज सुभाव दुराव नहिं तेज कोटि दिनराउ । कहो बचन रघुरार मृदु सुनहु बिनय मुनिराउ॥ ७०० ।। (चौपाई ) हे गुरु अस मानस कछु मेरो । करौं यल धनु ऐंचन केरो॥ धनुष उठाय चढ़ावन काही चहति चोप नेसुक बितमाहीं॥ पूछि लेहु मिथिलेस नरेसैजनन करन कह देहु निदेसै ॥ मुनि मिथिलेसै फह-मुलक्याई । तुव निदेस चाहत रघुराई ॥