पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/१४३

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रामस्वयंवर । १२७ विवाह की तैयारी (दोहा) विश्वामित्र-निदेस लहि जनक जाय दरवार । बोलि महाजन मंत्रि मुनि लभ्य सुहृद सरदार ॥७४५॥ (चौपाई) सतानंद तिहि अवसर आये । उठि भूपति आसन बैठाये ।। भूपति करि सबको सत्कारा । सतानंद सों वचन उचारा॥ कोसलपुर पटबहु अव चारा।लिखि पत्रिका चरित यह सारा॥ लै चरात कोसल-महराजा । आवहिं करन पुत्र कर काजा॥ कीरति विभव प्रताप बड़ाई । दसरथ को नहिं लोक लुकाई ।। भुवन-विदित निमिफुल-मर्यादा । प्रगट सवन ममरोष प्रसादा। मुनि आयसु मंत्रिन कह देह । करहिं काज सब दिन संदेह ।। उत पशिष्ट इत आप सुजाना । सकल भांति ही उभय समाना॥ सतानंद बोले तब बानी । धर्मधुरंधर भूप विज्ञानी ॥ तुव प्रताप सपरी सब फाजा । जस दिगंत फैली महराजा॥ अस कहि सतानंद सुख छायो । रोजकाज मंदिर महँ आयो। विश्वकर्म ओवाहन कियऊ । मुनि-तप-बल प्रगटत सो भयक॥ राम सिया व्याहन के जोगू । मंडप रचहु दिव्य सब भोगू॥ पुनि सब मत्रिन तुरत चुलाई । विश्वकर्म आधीन कराई ॥ राज रजाय सिल्पिवर धाये । अवध प्रयंत सुपंथ बनाये॥ जोजन जोजन मह हित वासा ।बिरचे विविध विलास निवासाय