पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/१४४

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रामस्वयंबर। . कमला तीर सवन अमराई । जहँ बसंतऋतु रहन सदाई । कीन तहां जनवास विचारा। विरचे थल थल विविध अगारा॥ जब दै सतानंद को सासन । वैठे विमल विदेह सिंहासन । सुभगाक्षर लेखक विद्वाना । राजप्रसास्ति जाहिल र ज्ञाना । तर्वाह महीप समीप बुलायो । कनक विचित्र पत्र बनवायो। सावधान है थिर मति कारकै । लिखहु.पत्र ललिताक्षर भरिकै। अक्षर लिपि प्रसस्ति मरु अर्था । हाइ हंसी नहिं देखन व्यर्था। निमिकुल-कमल-दिवाकर वैना। मुनि पंडित पायो अति चैना॥ कहो जोरि कर जथा निदेसू । लिखिहौं तिहि विधि तजि अंदेस। कोसलपाल जदपि बड़ राजा। इत नहिं कछुन्यून समाजा॥ (दोहा) अस कहि लाग्यो लिखन सो दसरथ भूपति पत्र । कनक कलित कागज ललित करि मानस एकत्र ॥ ७५६ ।। पत्र-प्रेषण (सारठा). - यहि विधि पत्र लिखाय चतुर चारि चारन, दिया। . तरल तुरंग चढ़ाय पठयो अवध विदेह नृप ॥ ७६० ।। - . (छंद चौवोला) लग्यो काम जहं जहं मग साधना तह तह किये पुकारा । करहु सीनता सकल सिल्पिवर शासन जनक भुवारा ॥'