पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/१४५

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रामस्वयंपर। १२९ यहि विधि देखत कहत चार ते जात तुरंग धवाये। दिवस द्वैक मह चलत दिवस निसि कोसलपुर नियराये७६१॥ करि प्रणाम धावन घोरन को अतिसय चपल धवाई।

सरजू सलिल पियायो वाजिन पहुँचि अवध अमराई ।

पहुंचि अवध उपचन विदेह के धावन सरजु नहाए । दै चंदन करिकै रविवंदन पहिरे बसन सुहाए ॥७६२॥" करिकै कछु भोजन मनमोजन! करि बाजिन स्त्रम दूरी। -साजु साजि पुनि चढ़े तुरंगन चले मोदभरि भूरी ॥ अवधनगर कीन्हे प्रवेस ते मिथिलापति के धावन | . जात त्वरीत चले जद्यपि ते निरखत नगर सुहावन ॥७६ बाकी रह्यो जाम भरि चासर तय अजनंदन भूपा।' बैठ्यो आय सभा सिंहासन भूपन वसन अनूपा ।। पुरजन परिजन सज्जन सिगरे बैठ राजदरवारे । सुहद सखा सरदार सचिव सब जगतीपतिहि जुहारी१७६४॥ तह सुयश जावालि कश्यप मार्कंडेय पुराने । . घामदेव अरु मुनि वशिष्ठ तहँ आये सभा सुजाने ।' उठि भूपति.प्रणाम तिन कीन्हे बर आसन वैठाए। जोरि पानि पंकज विनीत है सादर वचन सुनाए ॥७६५॥ आज सकुन बहु लखे नाथ हम जानि परै फल नाहीं। चढ़े स्वपन महँ स्वेत सैल पर देखे इंदु कहाँहीं॥ कछुक काल लगि मुनि विचार तहँ भाष्यो अवधभुवाले। लै चीठी अतिसय मन मीठी खवरि कही कोउ हालै ॥७६६॥