पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/१५६

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रामस्वयंवर मिथिलादेस प्रवेस कियो नप संग बरात लै भारी। तयते हँसि हसि हुलसि हुलसि जन देत माधुरी गारी॥ मंगल गान करत जुवती जुरि होहिं पंथ मह ठाढ़ी। . सदल दीप धरि कलस सीस पर बर देखन रति चाढ़ी ॥ अतिहि त्वरात प्रयात वरात गई जब कमला तीरा। तहने जनकनगर जुग जोजन जनक सचित्र तह धोरा॥८२६॥ जोरि पानि बोल्यो सुमंत सों इत सब भांति सुपासा । अव मिथिलापुर है जुग जोजन करे वरात निवासा ॥ नाय सुमंत कह्यो भूपति सों नृप कीन्हो स्वीकारा।। कमला तीर परे सच डेरा वन रसाल मनहारा ||८२७॥ करि भोजन सुख सयन अवधनप उठ्यो रहे दिन जामा । सभा मध्य मंडित धरनीपति मयो सुपूरन कामा ॥ सजन सैन्य हित दिय निदेस नप गमन दुंदुभी वाजे । सैनिक सकल बाजि गज स्पंदन अतिहि अनंदन साजे॥८२८॥ (दोहा) ... मिथिलापुर हल्ला परयो ऐहै बाजु बरात । - अगवानो हित जनक नृप साजी सैन विख्यात ॥८२६॥ . (छंद त्रिभंगी) .. मिथिलेस मतंगा सजि सब अंगा परम उतंगा चलत मये।' निमिकुल सरदारा करिगारा भये सबारा मोदमये ॥ अति चंचल बाजी बनि बनि राजी तुरकी नाजी सोहि रहे। राजस अति सादी उर अहलादी धृति मर्यादी बाग गहे ॥८३०४