पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/१६६

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रामखययर हमरेहु अति बाढ़ी अभिलाषा काज असि उत आजै । चढ़ि स्यंदन गमन्यो दशस्यंदन प्रजनंदन महराजा। याजे बाजन विविध सुहावन लस्या निसान दराजाIEl सुनत विदेह अवधपति आगम उठ्यो समाज समेतू ।। विश्वामित्र वशिष्ठ आदि लै गमन्यो निमिकुल-केतू । द्वार देस ते लिया भूप कह कियो प्रणाम विदेह । कर गहि चल्यो लिवाय सभागृह सादर सन्यो सनेह॥८३०॥ दै आसन दहिने सिंहासन पूछि सकुल कुसलाई । 'वैट्यो लहि निदेस निज आसन मिथिलापति मुद पाई ॥ अतर पान मंगवाय सचिव कर वीरो खोलि खवायो । लै सुगंध सव अंग लगायो किय सत्कार सुहायो ।। ८६१॥ "तिहि अधमर लक्ष्मीनिधि आयो सिर नायो नृप काहीं। लिया भूप बैठाय प्रीति भरि अपने अंकहि माहीं ॥ सानंदन कुशध्वज किय वंदन मिले अवधपति ताहीं। जनक-अनुज सत्कार कियोपुनि सघ रघुवंसिन काहीं॥८६२ अवधनाथ वाल्या विदेह सांजानि समय सुखदाई। बसुधा मह है विदित पुरोधा रघुकुल को मुनिराई ॥ नोम वशिष्ठ विरंचि पुत्र यह त्रयकाला सुजानो। ‘परमपूज्य इक्ष्वाकुवंत को इनते गुरु नहिं पाना ||८९३॥ विश्वामित्र चिनादित भाप्यो साखाचार समे है. कहैं भानुकुल को वशिष्ठ मुनि दुजो कौन बते है। विश्वामित्र सहित ऋपि सम्मत गुनि करतार-कुमारा।