पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/१६९

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रामस्वयबर। १५३ सिंहासन बैठाय देवऋषि दोउ बोले महिधामा RECm तुघ दरसन मा भए मुनि सपल सुनयन हमारे। • तब नारद मुनि मेदि भरे मन ऐसे बचन उचारे ॥ विधि-निदेसतुम से सब कहि अव राम दरसहित जैहै।। . चारिह बंधुन को दरसन करि महामाद नप पैहै। ॥६०६॥ मस कहि हरषिवपि नयनन जल चत्यो देवपि आस् । अहाँ सहित बंधुंन रघुनंदन वर घरात जनघासू ॥ यहि विधितिहि समाज महानंद छाय यो मिति नाहीं। हुलसि अवधति जोरि कंजकर कहो जनक नूप काहीं॥ राज-समाज रावरे कर ते लहे परम सत्कारा। देहु रजाय जाहि जनवासे बरनत सुजस तुम्हारा ।। विश्वामित्र वशिष्ठ क्ह्यो तब तुम अस तुमहि विदेह। हम सघ को अपने बस कीन्धो पास पसारि सनेह ॥१०॥ कोशलनाथ संग जनवासे हमहू फरव पयाना । करवैहे चारिहू कुमारन विविध सविधि गोदाना । मुनिवर-बचन बचन दशरथ के मुनि मिथिलेश सुजाना। भन्यो प्रेमबस कह कान विधि इत ते राउर आना HENER अस मभिल पित होय पीजै तस कारज भवसि विचारे । उट्यो अवधपति लै समाज सब उभय मुनीस सिधारे। नादी-मुख श्राद्ध बनवासे माये कोशलपति बैठे मंदिर माहीं।