पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/१७९

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रामस्वयंवर (चौपाई) सुनिदशरथ वशिष्ठ की बानी। सुमिरि गनेस महेस भवानी ॥ शतानंद गुरु .गाधिकुमारा । करि आगे मुंनि और उदास पुनि आगे फरि दुलह वारी । अंतापुर कह चल्यो सुखारी॥ गये खास रनिवास दुआरा । जहं ते नहिं पुनि पुरुष प्रचारा॥ गे ड्योढ़ी अंतहपुर केरी । सजी नारि तहं खड़ी घनेरी॥ तहँ रनिवास पौरि अधिकारी । जोरि पानि जयजीव उचारी। भरत प्रवेश नेग सो माग्यो । दिव मनिमाल राव अनुराग्यो। आये राम जय रनिशसा। अंतहपुर महँ भयो हुलाला ॥ धाई दूतह देखन नारी। देखि देखि जाती बलिहारी ॥ राउ मुनिन दूल हजुन भाये । मनिमंडित मंडप तर आये ॥ बानरु खंभ कलसा बिलसाही । मनहुँ भानु सितभानु सुहाहीं फनक वेदिका विमल बिराजै । कनकाचल कंदर लखि लाजै ।। पुग्ट' पालिका अगनित भारी । लसै जवाँकुर की हरियारी। लसत अमोले कनक करोले । भरे सुरभि जल धरे अतोले ॥ कनक थार कोपर रतनाली । धूप दीप भोजन मनिमाली ॥ 'विछे पवित्र दर्भ महि माहीं । तह रत्नोसन चारि सुहीं है। (दोहा) दिपति दिव्य दीपावली, तारावली प्रमान । रत्न बिहंग बिराजहों, छवि सुर वृच्छ समान ||8| (चौपाई) तहाँ जनक सोशल महराजै। सिंहासन दिन पैठन काजै ॥