पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/१८५

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रामस्वयंबर। (सेरठा) यहि विधि करि तह राम, सिय सिर सेंदुराभरत । तिमि जयवंधु ललाम, बधुन सीस सेंदुर भरे ॥२०॥ (दोहा) गौतमत वर-करन सो, देव विसर्जन कर्म । करवायो विधिवत सकल लोक रीति कुलधर्म ॥२१॥ (चौपाई) चोलो तहां सुनैना रानो । वालि सखीजन मुखी सयानी ॥ लै दुलहिन दुलह कहँ जावो । हिलमिलि कुहवर-बार करावा तह लक्ष्मीनिधि को बर नारी । सिद्धि नाम तुरतै पशुधारी ॥ राम पानि गहि चली लिवाई । जोरे गाँटि चारिहू नाई । गाय गाय बर मंगलगाना । चार करायो सहित विधाना ।। वेद रीति कुलरीति निवाही। कहैं न बर जनवाले जाही॥ तह रनिवास हास रसमाचा। सबही कर अतिसय मन राचा जानि तहाँ अति काल सुनैनो । आय जनक रानी कह बैना । जनवाले अय कुंवर पटैयो। काल्हि कलेऊ हेत बुलैयो। सासु बचन सुनि सिद्धि सुखारी। कहीं गिरा रामहि मनहारी॥ (दोहा) अब जइये जनवास को, लाल होत अतिकाल । काल्हि कलेऊ के समय, देहों उतरु रसाल ॥२७॥ (छंद कामरूप) मुनि सिद्धि के अस वचन सुंदर रचन पाय हुलास।