पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/२१४

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रामस्वयंवर।

१६८ रामस्वयंवर। मेरे आगे मोर सुत हतो न भृगुकुल-भान । मोहिमारिपुनि कीजिये जो कुछ तुव अनुमान ॥ २२५ ॥ (सवैया) बोल्यो वशिष्ठ सुनो भृगुनायक आप तो देह दया उर छाइये। जो लरिका लरिकाई करे तो छमा करिकै मन ते विसराइये ।। श्रीरघुराज खड़े सरनागत मासु अझै करिकै अपनाइये। आपछमासे छमाधरिह नहिं बालक चोतन में चित ल्याइये, २२६३ दोहा। सुनि दोउन के वचन मृदु, दै अनाकनी राम । पोले रघुपति सों वचन, सुनहु राम अभिराम ॥२२७१ . चौपाई। विश्वकर्म जुग धनुष बनाये । अति उत्तम देवन दरसाये ।। तिहि अवसर त्रिपुरासुर घोरा भये दैत्य भतिसय वरजोरा दीन्ह्यो देवन महाकलेशा |गये देव सब जहाँ महेशा ॥ हर कहँ आरत पचन सुनाये । पचैं तुम्हारे देव बचाये ॥ कह शितिकंठ कोदंड न मारे गहनों कान विधि रिपु बरजोर ॥ तब वह धनुप देव सब दीन्हें । जौन राम तुम खंडन कीन्हे ॥ दीन्हे द्वितिय विष्णु कह चापा । नाम तासु शारंगहि थापा ॥ लै पिनाक हर त्रिपुर सँहारे। हरिहु अनेकन दानव मारे । आपुस महं सब सुर बतराहीं। कैोन वली दोउ देवन माहीं । कहे पितामह से अस बानी हरिहर महँ किहि अधिक यखानी ।