पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/२५०

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२३४
रामस्वयंवर।

२३४ रामस्वयंवरा तहां राम सौमित्र कोपे अपारातजेचापते दाप कै वान धारा।। लो वान मानो महा वज़पाता। तुरंगी मतंगौ सताँगो निपाता। नदी रक्तधारानिकी वाढ़ि धाई। मिली सिंधुको लालरंग बनाई।। भये अस्तताही समय में तमारीलरैलागिलंकानिवासी सुखारी॥ . (चौपाई ) .... .. .. ... . आये राक्षस और अनेकन । जिमि पतंग पावक कह पेखन ॥ कनकवान तजि तजि रघुनायक । कीन्हेसवनस्वर्ग के लायक ॥ हनुमत अंगद ·हने निशाचर । आयो मेघनाद जोघावर ॥ कोपि इंद्रजित गयो गगन महँ । अंतर्धान कियो निजतनु कह ॥ . हने लाग सठ वान हजारन । भये सर्प, करि चले.फुकारन ॥ लपटे राम लपन के गातन । नागपासं प्रभु बंधे सकल तन ॥ . . . . (दोहा) , .. .. हनुमत अंगद आदि भट, प्रभु कह लीन्हें घेरि । आयो तहां विभीषणहु, विकल भयो प्रभु हेरि ॥४६॥ (हाकल, छंद.).. लंकेस सुरति सँमारिकै बोल्यो सुवैन विचारिकै ॥ ... यह काल है न विपाद को । पैही अवसिअहलादको ॥४६७) घननाद उत घर जाइकै । वोल्यो वचन जय पोइकै॥ हम जुगल वंधुन मारिकै । आये समर महि डारिकै॥४६॥ ." दशकंउ सुनि सुत-वैन को पायो अमित उरचैनको ॥ . . . . गमन्यो रही जहँ जानकी । वोल्यो गिराअभिमान की॥४६॥ घननाद करि संग्राम को । मासोलपन अरु राम को .