पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/२५४

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२३८
रामस्वयंवर।

२३८ रालवयंघर। नाथ हमारे कंध चढ़िः जीतहु रिपु यहि वार ॥४३॥ पवनसुवन के वचन सुनि प्रभुनेसुक मुसक्यान | .:: - चढ़े कपीसहिं कंध पर जथा गरुड़ भगवान ॥४६॥ __ (भूलना छंद) । ले चल्यो मारुतनंद श्रीरघुनन्द वेग -अमंद । रघुवंस-पंचानन दशानन देखि भे सानंद ॥ प्रभु किये परम कठोर तह सारंग को टंकार। केते निसाचर कान फूटे भजि चले चहुं ओर ॥४६५५ . बोल्यो दशानन सों गिरा गंभीर श्रीरघुवीर। . ठाढ़ो रहै ठाढो रहै कह जात दै अव पीर ॥ प्रभु के वचन सुनिलजत कोपतलंकपति बहु तीर।. मागे अनिलसुत को सुरति करिवैर पूरव वीर ॥४६६|| तिल तिल विधे तनु वानपै हनुमान तेज-प्रभाउ छन छन बढ़त द्विगुणित समरलखि कुपतिभे रघुराउ ॥ . . रघुवंसमनि मंडलाकारहि करि कोदंड प्रचंड । ' .. सर धार समर मझार छोड्यो वार वार अखंड ॥४६७|| रघुवीर ले यक तीर रावण के हन्यो उर माहि ॥ .. .. गिरिगो धनुष धरनी व्यथित तनु रहीसुधि कछु नाहि ॥ ... .. विषहीन आसीविषज़या जिमि अग्नि ज्वाल बिहीना: '. मुसक्लाय कोसलनाथ मासोदचन वान प्रवीन ॥४६॥ अव जाहि लंका रहित संका थाक नेकु निवारि । 'चहिस्थ सरासन लै बहुरि अइयोसमर पशुधारि ।।