पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/२५८

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२४२
रामस्वयंवर।

२४२ • रामस्वयंवर। (छंद पद्धरी). . . सुग्रीव रहौ अव सावधान । हो कुंभकर्ण नहिं वीर आन ॥ अस सुनत कीसपति लै पहार । दसकंठ अनुज पैकिय प्रहार ॥ गिरि कुंभकर्ण तनु.लगि तुरंत । छहराय पसो टूके अनंत ।। तव कुंभकर्ण महि रोकि पाँउ । घाल्यो सुकंठ पै सूल. घाउ ॥ लखि सूल गुन्यो मत हनूमान । राजा विसेषि विन,भयो प्रान ॥ धायो अमंद अंजनीनंद । अति करी लाघवी कपि.सुछंद ॥ पायो न जान सुग्रीव पाहिं । गहि लियो शूल बीचही माहिं ।। , दै जानु शूल टोरयो प्रवीर । लखि लगी प्रशंसन देवभीर ।। लखि कुंभकर्ण निजशूल भंग। लीन्ह्यो उखारि गिरिमहासँग । धायो सुकंठ के. ओर घोर । मारयो पहार करि बाहु जोर ॥ तहँ कुंभकर्ण धायो प्रचारि । लीन्ह्यो उठाय कपिपति सुरारि ॥ तिहि काँख दावि लै चल्यो लंक । दसकंठ अनुज दुर्मद निसंक।। (छंद चौधोला) ' कुंभकर्ण पहुंच्यो बजार महँ कपिपति गहे प्रवीर। चढ़ी अटारी निसिचर नारी वर्षहिं चंदन नीर ॥ 'सो सीतलता पाय की सपति मुरछा तज्यो प्रवीर । दवे काँख महँ का करिये अव अस विचारि रनधीर ॥५२२॥ कढ़यो कुक्ष ते गयो कंध पर दंतन काट्यो नाक । काटि कर्ण दोउ करन करज ते फैलायो जस नाक ॥ पद नख ते दोउ पार्श्वविंदासोपुनि उड़िचल्यो अकास। . कुंभकर्ण पद पकरि पछासो मान्यो प्रान पिनास ५२३।।