पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/२६१

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२४५
रामस्वयंवर।

रामस्वयंवर। २४५ (दोहा) मेघनाद अस कहि चल्यो, सठ निकुभिला जाय। कीन्हो पावक होम खल श्याम छाग कटवाय ॥५३५॥ कीन्ह्यो तंत्र विधान ते महाघोर अभिचार । ब्रह्मास्त्र अनुभव कियो कारन कीस संहार ॥५३६॥ दिव्य धनुप अरु दिव्य रथ प्रगट्यो अग्नि कराल । स्वै स्यंदन में चढ़ि चल्यो धारे धनुप विसाल ॥५३७॥ वोल्यो रजनीचरन सों करहु घोर घमसान। आपु सरथ सह सारथी हँगो अंतर्धान ॥५३८॥ (छंद तोटक) ब्रहास्त्र कीन प्रयोग । सर तज्यो जनु अहि भोग ।। वर्पन लग्यो बहु वान । है गगन अंतर्धान ॥५३॥ माया कियो अति घोर । अँधियार भो चहुँ ओर ॥ नच सप्त पंच कपीन । इक इक सरन वध कीन ॥५४०॥ लै वीर भूधर वृच्छ । धावहिं चकित ऋच्छ ॥ देखहिं न मारत जोय । तव फिरहि अतिभय मोय ॥५४॥ व्याकुल भये कपिद। गे सरन रघुकुलचंद ।। लै धनुप लछिमन राम । दोउ तजे सरबलधाम ॥५४२॥ नहिं लखि परत धननाद । सुनि परत केहरि नाद ॥ जिहि पंथ आवत चान | तिहि पंथ करि अनुमान ॥५४३॥ सर त्यागि दुनों भाय । घननाद तनु किय घाय ॥ तव इंद्रजित वरजोर । ब्रह्मास्त्र छोड्यो घोर ५॥४॥