पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/२६६

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२५०
रामस्वयंवर।

२५० रामस्वयंवरा घुसि गये वानर जनसाला किये मख विध्वंस । नहिं सहि गयो अपचार धाया हंस राक्षसवंस ।। भागे चलीमुख देखि चासवजीत आवत कुद्ध । धायो प्रभंजननंद तासों करन जुद्ध विसुद्ध ॥५७॥ तब लपन धनु टंकोर करि मारे अनंतन यान । लंकेशसुत पाछे चितै लखि लपन येर प्रधान ॥ बटवृक्ष के तल जानि लपनहि तासु मुख कुम्हिलान । जह ते रह्यो सट होत मारन कपिन अंतर्धान ||५७८॥ • धायो प्रभञ्जननंद लीन्हें कन्ध लछमनलाल । उतते सरुप दशमुख-सुवन आया महा विकराल॥ धननाद लै पुनि तीन सर मारयो लपन तनु माहि । ते वैधि वस्तर विधै तनु पै पीर कीन्हें नाहिं ॥५७६।। दोउ विश्वविदित प्रवीर चोखे दोउ महा रनधीर । दोउ परम दुर्जय दुराधर्ष सहर्ष वर्पत तीर ॥ दोउ सैन्य देखत समर कौतुकं लिखित चिन अकार । नहिं देखि परत प्रवीर दोउ करि समरसर अँधियार ५८oll रावणअनुज तह लग्यो मारन राक्षलान अपार । साखामृगन वोल्यो वचन निसिचर करहु संहार। दोउ करन लागे 'जुद्ध उद्धत हनि परस्पर वान । संरजाल दोऊ दुरंत दीप्तत जथा पावस भान ॥५८।। दोउ निरखि परत अलीत चक्र समान ज्वलित कृसान । जनु चारि ओरहु अनलकन झरझर झरस झहरान ॥