पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/२६८

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२५२
रामस्वयंवर।

२५२ रामस्वयंवर। सुनि रावण द्वै गयो विमूर्छित तन कीसुरति विसारी। . पुनि उठि आँसुन धारवहत द्वग बोल्यो गिरा.पुकारी.. अव का जिये जगत मह सुत विन लगति देह मम भारा; हमहीं चलव समर सन्मुख अव देहु दिवाय नगारा ॥५८७॥ राम-रावण-युद्ध दसमुख सासन सुनत निशाचर सजे समर हित सूरा। वीस लक्ष रथ तीस लक्ष गज पैदर पुहुमी पूरा॥ साठि करोर तुरंग संवारे सेनापति भट चारी। . चली निशाचर की अनीकिनी परी दिसन अँधियारी ॥५८८॥ दसमुख लख्यो वानरी सैना पारावार समाना। .. धस्यो धुनत सर पैन अपारन अति उत्पात दिखाना ॥ "मारन लाग्यो महा करालन वानन सो दसभाला। दशमुख सन्मुख समर प्रखरसरसहै को वीर विसाला ॥५८६॥ (चौपाई) लपन निरखिरनंरावण आवत । बढ्यो जुद्धहित धान चलावत॥ तजी लपन सायक वर धारा । नद्यो रिपुरथ लगीन बारा ।। लपन वान वारन करि रावन । आयो जहाँ जगतपति पावन ।। करने लगे दोउ'युद्ध भयावन । जंगअभिराम राम अरु रावन ।। उभय विसारद अस्त्र अनंता । उभय धीर संगर बलवंता॥ रघुनायक सायक पुनि पाँचा । मासो रावण भाल नराचा॥ 'तनक विकलं है उठ्यो दसानन । छोड्यो असुरअस्त्र-पंचानन ॥