पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/२८७

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रामस्वयंवर।

रामस्वयंवर। - अवलय आप प्रताप को कछु और मेरे नहि रह्यो । गवने निवेसहि दै निदेसहि गुरु जबै हिय हरषिकै। संघ सहित तिय रघुनाथ निवसे नेमजुतमुद वरपिकै६५०॥ . .. (कवित्त) .. . जानिकै प्रभान प्रभु मीजि जलजातनैन, उठे अंगिरात अल- कावली संभाली हैं। आरत लपन रिपुदमन अनिलसुत, सुगल विभीषणप्रणाम कोउचासो है।रघुराज आलिप देकीन्हें प्रातकर्म सव, मजनकै नाथ रंगमंदिर पधालो है। बंदि कुलदेव करि सेव बोलि भूमिदेव, देन लागे दान मेव मन ते विसासो है ।।६५६॥ . (सोरठा) उदयमान जब भानु भै प्रसन्न प्राची दिसा। वाजे अमित निसान, मच्यो नगर खरभर महा ।। ६५२ ॥ (चौपाई) रामराज अभिषेक अनंदा । सुनि सुनि आये नागर वदा॥ गायक गावहिं गुनगन गीता । होय सुजजसुनि भुवन पुनीता ॥ गुरु वशिष्ठतिहि अवसर आये । मुनिन वृद. सानंद: सुहाये ॥ चोलि लपन बोले अस वानी। आनहु जनकसुता छविखानी ॥ सीतहि ल्याये तुरत लिवाई। रही तहाँ चहुँकित छविछाई ॥ सीता रामहिं संग लिवाई । चले मुनीस खात्ययन गाई ॥ कललावली. मातु · पठवाई । सुंदर. सखी साजि लव आई ॥ भरि सव सकुन सुकंचन थारा | गावत मंगल वारहिं वारा ॥ जननी अंटन भारोखन बैठीं । पेखि प्रमोद पयोनिधि पैठीं ।।