पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/३०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रामस्वयंबर। आई बहुरि बसंत जबै ऋतु राजा मनहिं विचारी। गुरु वशिष्ठ के भवन गयो चलि बोल्यो पद सिरधारी ६८॥ (दोहा) आप हमारे सुहृद गुरु, मोपर किये सनेह । रचहु यज्ञ संभार सय, यह भारा तुव लेहु ॥६६॥ जज्ञ-प्रबंध । (छंद चौवोला) एवमस्तु कहि गुरु वशिष्ठ मुनि बोले घचन विचारी। करिहैं हम सब जस समर्थि मम कारज विघ्न निवारी॥ अस कहि सभा वशिष्ठ सिधारे विप्रन लियो हकारी। जे धर्मज्ञ वृद्ध मंत्री सब वाजीमख-अधिकारी ॥ ७॥ तिन सों कह्यो करहु मख कारज परिचर लेहु वुलाई । सकल कर्मचारी कारीगर सके जे सुभग बनाई ।। अरु जिनको उपयोग यज्ञ में वेदवादि मरयादी। बोलहु विप्र हजारन पंडित वाजीमख प्रतिवादी॥७१ ॥ सानुकूल सब करहु कर्म यह भूपति-शासन मानी। सहसन कनक ईंट द्रत आनहु जेहि वेदी निरमानी॥ विविध अन्न संपति सम्पादहु पानहुं विविध प्रकारा। अतिथि अवनिपति पुरवासिनहित रचहुभुवन विस्तारा॥ जे कारीगर यश वस्तुाके सुंदर घिरचनवारे। . ते सब क्रमते अति विशेष ते जाहिं विविधसत्कारे