पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/४९

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३२ रामस्वयंवर। महा महर्षि वशिष्ठ आदि नृप लै अंतहपुर गया । कुल व्यवहार चार संसारी सकल निवाहत भयऊ। वीति गये यहि भांति दिवस दस मंगल मोद उराये। एकादसय दिवस भूपमनि मुदित वशिष्ठ बोलाये ॥१७॥ सिंहासन बैठाय पूजि पद बार बार सिर नाई। . अति विनीत है विनय कियो नृप आनंद अंबु यहाई ।। देव मनोरथ सकल हमारे पूरे दया तिहारे । . जदपि रहे दुर्लम परमेश्वर करुना नैन निहारे ॥१७॥ नामकरण । (दोहा) नाथ घरी सुख सोधि कै, द्विजन सहित चिन देर। . नामकरन अव कीजिये, चारि कुमारन केर ॥१७॥ (छंद.चौबोला) माधव कृष्ण पंचमी सुभ तिथि नामकरन अव होई।... यह सुनि अवध प्रजा उछाह वस लहे नींद नहिं कोई ॥ नई साजु साजन सव लागे वांधे पीत निसाना। वारन कदलिखंभ द्वारन प्रति ताने विसद विताना ॥ १७८॥ खैरभैर मचि रह्यो नगर मह नामकरन उतसाहू।। कियो जनाव जाइ रनवासहि-यह उराउ नरनाहू ॥ नामकरन सुनि सकल कुमारन अति हुलास रनिवासा ।