पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/५५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रामस्वयंबर । गावहिं मंगल गीत प्रीत भरि कनक कुंभ सिर धारे।

कोउ दधि दूर्व हरद अच्छत भरि चली कनक कर थारे ॥

यहि विधि सहित सकल रनिवास हुलास भरे महिपाला। रंगनाथ मंदिर महं आये लैचारिहु निज लाला ॥२१५॥ किया महीपति रंगनाथ को पूजन सकल प्रकारा। बार बार वंदन करि सिर से करि अस्तुति बहु बारा॥ चारि कुमारन के कर ते तहं नेउछावरि करवाई। .. "बोलि परम परवीन सुआरन वहु व्यंजन बनवाई ॥२१॥ 'धरयो रंगपति के आगे सब थारन पुरट भराई। . • गुरु वशिष्ठ तहं रंगनाथ कह दियो निवेद लगाई। रंगनाथ को लै प्रसाद मुनि रामहि दियो खवाई। बहुरि भरत कह तिमि लपनहुं कह रिपुहन को सुखछाई ।। मुनि वह सुनहु महीप सिरोमनि लै निज अंक कुमारा। करहु अन्नप्रासनी पानि निज जथा चंस व्यवहारा॥ पढ़न लगे स्वस्तैन ब्रह्मऋषि गाइ उठौं सव नारी। लै नरनाथ अंग रघुनाथहि रंगनाथ संभारी ॥२१८॥ तनक तनक सिगरे सुख व्यंजन सुतहि खवावन लागे। मोचत जुगल विलोचन आनंद वारि परम अनुरागे॥ रानी सकल कुमारन को तब राई लोन उतारी। .. भाल-डिठौना दै अति लोना फेरि उतारी बारी ॥२१॥ भूपति लै चारों कुंवरन को सपदि बाहिरे आये। ' शत्रुजय सिंधुर हरि गज सम तापर दियो चढ़ाई ॥