पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/५९

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रामस्वयंबर।। सील अयन जुग नलिन नैन यर अति विसाल कजरारे। मनहुँ मीन छवि जाल फैसे द्वै सोभासिंधु करारे ॥२३५॥ मन हुलासिका नवल नातिका लघुमुकुताजुत राजै। मानहुँ चंपककली भली विधि ओस बिंदु अति भ्राजै॥ अति मृदु बदन अधर अरुनारे लसहि दैतुरिया प्यारी। मनहुँ कंज विध धरै विच जुग अंतर चीज निहारी॥२३६॥ लसत कपोल अमोल गोल अति तनक अलक छहराहीं। मनहुँ सेभ सरसी मनि मंडित काम केतु फहराहीं । मधि हीरा दुहुँ दिसि मुकुतावलि कठुला कंठ विराजा। बंधुकंबु कह.भुज पसारिजनु मिलन चहत द्विजराजा॥२३७R छोटी मुकुतमाल लहरै उर जननी करन सँवारी। मानहु जमुनधार हंसावलि बैठी पंख पसारी . छोटे छोटे भुजन विजायठ छोट कटक कर माहीं॥ मनहु भरी छवि छरी मदन की बंधन कनक सोहाहीं॥२३८॥ (कवित्त घनाक्षरी).. कोसलेस लालजू के लाल लाल पदतल, अंकुस कुलिस कंज चक्र धुज रेख हैं। . मुकि मुकि वाण कौशिला के आंगन में,.. झुमुकि झुमुकि बाजै भूपन बिसेष हैं.॥ . द्रवीभूत होती मनि उप₹ चरन चारु, :.. चूमैं चंद्रबदनी अनंदित असेप . हैं।'