पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/६६

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रामस्वंयवर । जेहि सुनि विद्याधर चारन किन्नर गंधर्वहु लाजे॥ करनाटकी नटी प्रगटी पुनि घटी घटी सो नटती- चलतिचटपटो परम अटपटीनटन माहिनाहिं नटती॥२६७। (सवैया). कौतुकी कौतुक कीन्हो भलोजुग जामव्यतीते भयो अतिकालै। वंद करौ अव फंद सवै जननी बोलवावती लालन हालै ॥ यो कहि भूपं तुरंत सुमत को शासन दीन्ह्यो उदार उताले । देहु इनाम इन्हें गज वाजि विभूपन संपति साल दुसालै ॥२६८॥ , (छंद चौवाला) . . . . . चारिह बालन निकट बोलि नृप बदन चूमि अस वाले। • मातु-भवन अव सुवन जाहु सब भोजन करहु अमोले। .: 'कहे कुंवर तव पिता संग तुच भोजन करव तहाँही। नहिं जैहैं नहीं खैहैं तुम विन बैठे रहव इहाँही ॥२६६ ॥ सुनि सिसु 'बचन चिहलि भूपतिमनि आसुहि उठे अनंदे । उठे सकल सामंत सूर सरदार नरेसहि चंदे । ' अंतहपुर प्रवेस करि राजा गये कौसिला अयना । , नृप सँग चारि कुमार निहारि सुफल भे सबके नयना॥२७०॥ चारु चारि चामीकर के तह धरे सुवारन थारा। पंचम थार भूप के आगे व्यंजन विविध प्रकारा॥ लागे भोजन करन भूमिपति नारायन मुख भापी। 'विविध बात बतरात हँसत कछु महामोद मिति नापी ॥२७॥