पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/६८

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५२ रामस्वयंवर। बीति गये कछु काल मोदमय भे नव वर्ष कुमारा। जननी जनक करन तब लागे मनहीं मनै विचारा ॥२५॥ कौसल्या कैकयो सुमित्रा कह्यो महीपति वैना । भये कुमार वर्ष नव के सब केशव कृपा सवैना। चाही कियो हमहुं तुमह को अब व्रतबंध विचारा। एकादस हायन के अंतर लहैं जनेउ कुमारा ॥२७६|| निज अभिम्त सब रानिन को मत लानि उठे अवधेला। गये सुमंतसहित अति आतुर तेहि छन गुरू-निवेसा ।। करि वंदन पद जोरि कंज कर विनय किया सिर नाई। उचित होइ तो कुवरन को व्रतबंध करौं मुनिराई ॥२७॥ वचन केद्यो गुरु रचन हेतु व्रतबंध यज्ञ संभारा। पगुधारो नरनाथ निले अब दूसर नाहि विचारा॥ करि प्रणाम गुरुपदपंकज को भूपति भवन सिधाये । 'अनुजन सहित राम व्रतबंध करन की साज सजाये ॥२७८॥ (दोहा) जेहि जस देत निदेस गुरु, सो तस ठानत काज । विप्र सचिव परिजन प्रजा, पूरन सदन समाज ॥२७६।। (छंद चौवोला) । जानि मुहरत गुरु वशिष्ठ तहं चारिहु कुंवर बोलाये। राज समाज सहित दसरथ महराज कुंवर जुत आये॥ बाजत चिषिधि मनोहर बाजन घर घर मंगल गावें। राहिं नारि मनोहर सोहर मोहर मुदित लुटावै ॥२८॥