पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/६९

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'रामखयेवर। छाइरहीमख मंडप अंतर विप्र वेद धुनि धारा। "नचाहि नर्तकी विविध कलाकरि दसरथ भूपति द्वारा। तह वशिष्ठ मुनिसों महीप कह कृत्य करावहु नाथा। तुमरी कृपा लहे हम यह दिन रघुकुल भयो.सनाथा ॥२८१॥ तह महीप:चारिह कंवरन की अलकावली निहारी। जानि.?ौर व्रतबंध विहित विधि भरि आये दगाबारी॥ चारि कनक चौकिन में वारि कुमारन को बैठाये। दान कराइ वेद विधि अनुसर मुनि मुंडन करवाये ॥२८२R वेद विधान कराइ मंजु मेखला प्रभुहि पहिरायो। मनहुं नीलमनि महिधर के मधि बासुकि अहि लपटायो॥ जासु नाम श्रुति पंथ परतही पाप परावन हाई। तेहि प्रभु के श्रुति. पथ गायत्री मुनि उपदेस्यो.सोई।।२८३॥ । मंजु मेखला धारि दंड लै प्रभु पहिरे कौपीना । " . भिच्छा माँगन हेतु ठाढ़ मे चारिहु बंधु प्रवीना। .: स्याम वरन,,तनु कनक जनेऊ सोहि रह्यो छविखानी। मनु तमाल में सोनजुही की ललित लता लपटानी ॥२८४४ औसर जानि उठे जगतीपति संग चली.सब रानी।। मुक्तामनि प्रबालू मानिक लै दियो भीख मनमानी ।। लै भिच्छा सिच्छा अरु दिच्छा इच्छा के अनुसार। शासन लहि गुरु पितु मातन को माँगन चले अगारा॥२८५० ', गये पिता के भवन कुंधर सव भूपति देखि जुड़ाने। लियो लिंक बैठाइ कुमारन सिंहासन हरषाने ॥ ...