पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/७९

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रामस्वयंबर। , ३. पूरब मलद करूष देस द्वै देव किये निरमाना 1: पूरन रहे धान्य धन जन ते सरित तड़ागहु नाना ॥३४०॥ कछुक काल ते पुनि इक यक्षी कामरूपिनी घोरा । धारन करि हजार हाथी बल होत भई वरजोरा॥ सुंद नाम को यक्ष भयो यक रही ताहिकी दारा । नाम ताडुका भूरि भयावन जेहि मारीच कुमारा ॥३४१॥ सोइ राक्षस मख मोर विनासत त्रासत देसनिवासी । जननि तासु ताडुका भयावनि खाति मनुज की रासी ॥ मलद करूप देस मह जवते किय ताडुका निवासा । तबते दियो उजारि देस दोउ दै जीवन को त्रासा ॥३४२॥ (दोहा) दारुन बन वृत्तांत यह, मैं वरन्यों रघुनाथ । देस उजारयो ताडुका, अब तुम करौ सनाथ ॥३४३॥ सुनिमुनिवर के वचन वर, जारि पंकरुह पानि । नाय सीस नेसुक विहँसि, राम कंही मृदुवानि ॥३४॥ ताडुका-वध (छंद चौवोला) गो ब्राह्मण हित सकल लोक हित तुव शोसन हित नाथा । मैं करिहै। ताडुका निधन हठि जो हैहैं। रघुनाथा ॥ अस कहि श्रीरघुबीर बीरमनि गहि कोदंड प्रचंडा। कियो धनुप टंकर घोर रव भरिगो भुवन अखंडा ॥३४५॥