पृष्ठ:संगीत विशारद.djvu/७३

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  • सङ्गीत विशारद *

रागलक्षणम् के ७२ कर्नाटकी मेल पण्डित व्यकटमसी के बाद कर्नाटकी सगीत की एक पुस्तक “रागलक्षणम" और लिसी गई, उमके लेसक ने भी ७२ याट मानकर उनमे लगभग ५०० जन्य रागों की उत्पत्ति बताई है। इम ग्रन्य के अनुमार ७ थाट आजकल कर्नाटकी सद्गीत पद्धति में प्रचलित हैं। इमे वे अपना आधार प्रथ मानते हैं। राग लक्षणम के लेखक के स्वरी में और व्य कटमसी के स्वर नामों में कहीं-कहीं अन्तर पाया जाता है। नीचे की तालिका में हम अपने प्रचलिन हिन्दुस्तानी पद्धति के १२ स्वरों के साथ-साथ व्य कटमसी और राग लक्षणम् के स्वर दिमाते हैं। हिन्दुस्तानी स्वर । व्यकटमसी के स्वर रागलक्षणम् के स्वर १-सा मा -रे (कोमल) | शुद्ध रि ३-रे (शुद्ध) | पचश्रुति रि या शुद्ध ग ४- (कोमल) पट श्रुति रि या साधारण ग ५-ग (शुद्ध) अन्तर ग ६-म (शुद्ध) शुद्ध म ४-म (तीत्र ) प्रति म या वराली म शुद्ध रि | चतुश्रुति रि या शुद्ध ग । पट श्रुति रि या साधारण ग अन्तर ग शुद्ध म प्रतिम –ध (कोमल) शुद्ध ध १०-च (शुद्ध) | पच श्रुति ध या शुद्ध नि ११-नि (कोमल) पटश्रुति ध या कैशिक नि १२-नि (शुद्ध) J काकली नि शुद्ध चतुश्रुति ध या शुद्ध नि ! पटश्रुति ध या कैशिक नि | काफली नि श्रम आगे की तालिका में रागलनणम ग्रन्थ के अनुसार ७२ मेल नाम और स्वरों सहित दिये जाते हैं। इसमें प्रारम्भ के 36 मेल शुद्ध मध्यम पाले हैं और उसके वाद के ३६ मेल प्रति मध्यम वाले हैं।