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उनकी कलम से अङ्कित यह नाटक कैसा होगा। इससे अधिक लिखना अपने मुँह से अपनी प्रशंसा करना होगा।

हमारी इच्छा थी कि चित्र आदि से युक्त करके इस नाटक को बड़े सज-धज के साथ निकाला जाय पर लेखक महाशय ने चाहा कि इस पुस्तक की जांच इसके चित्ताकर्षक चित्रों और अन्य सजाने की सामग्रियों द्वारा न होकर इसके रोचक और मनोहारी विषय और वर्णनपटुता द्वारा ही होनी चाहिये। इसीलिये इसे इसी रूप में निकालने के लिये हम बाध्य हुए यानी यही उचित और यही परीक्षा वास्तविक परीक्षा होगी।

जो कुछ है उदार पाठककोंके सामने है। इसे चखकर वे ही हिन्दी संसार को बतलावेंगे कि प्रेमचन्दजी ने उपन्यास के बाद नाटक में भी कितना रस भर दिया है।

विनीत—

—प्रकाशक