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दूसरा अङ्क

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सबल--औरत है? कोई भिखारिनी है क्या? घरमेंसे कुछ लाकर दे दो। तुम्हें ज़रा भी तमीज नहीं है, जरासी बातके लिये मुझे दिक किया।

दर्बान--हुजूर भिखारिनी नहीं है। अभी फाटकपर एक्केपरसे उतरी है। खूब गहने पहने हुए है। कहती हैं मुझे राजा साहबसे कुछ कहना है।

सबल--(चौंककर) कोई देहातिन होगी। कहां है?

दर्बान--वहीं मौलसरीके नीचे बैठी है।

सबल--समझ गया, ब्राह्मणी है, अपने पिताके लिये दवा मांगने आई है। (मनमें) वही होगी। दिल कैसा धड़कने लगा। दोपहरका समय है। नौकर चाकर सब सो रहे होंगे। दर्बानको बरफ लाने के लिये बाजार भेज दूं । उसे बगीचेवाले बंगले में ठहराऊं। (प्रगट) उसे भेज दो और तुम जाकर बाजारसे बरफ़ लेते आयो।

(दबीन चला जाता है। राजेश्वरी आती है। सबलसिंह तुरत
उठकर उसे बगीचेवाले बंगले में ले जाते हैं।)

राजेश्वरी--आप तो टट्टी लगाये आराम कर रहे हैं और मैं जलती हुई धूपमें मारी-मारी फिर रही हूँ। गांवकी ओर जाना ही छोड़ दिया। सारा शहर भटक चुकी तो मकानका पता मिला।