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दूसरा अङ्क

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पर यह नशा न उतरा। मैं अपने मनके इस रहस्यको अबतक नहीं समझ सका। राजेश्वरी, सच कहता हूं मैं तुम्हारी ओरसे निराश था। समझता था अब यह जिन्दगी रोते ही कटेगी, पर भाग्यको धन्य है कि आज घर बैठे देवीके दर्शन हो गये और जिस बरदानकी आशा थी वह भी मिल गया।

राजे०--मैं एक बात कहना चाहती हूँ, पर संकोचके मारे नहीं कह सकती।

सबल--कहो कहो, मुझसे क्या संकोच! मैं कोई दूसरा थोड़े ही हूँ।

राजे०--न कहूँगी, लाज आती है।

सबल--तुमने मुझे चिन्तामें डाल दिया, बिना सुने मुझे चैन न आयेगा।

राजे०--कोई ऐसी बात नहीं है, सुनकर क्या कीजियेगा?

सबल--(राजेश्वरीके दोनों हाथ पकड़कर) बिना कहे न जाने दूंगा, कहना पड़ेगा।

राजे०--(असमञ्जसमें पड़कर) मैं सोचती हूं कहीं आप यह न समझें कि जब यह अपने पतिकी होकर न रही तो मेरी होकर क्या रहेगी। ऐसी चञ्चल औरतका क्या ठिकाना......

सबल--बस करो राजेश्वरी, अब और कुछ मत कहो। तुम ने मुझे इतना नीच समझ लिया। अगर मैं तुम्हें अपना हृदय