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दूसरा अङ्क

९९

योंका हार"है न?

ज्ञानी--हां महाराज यही बात थी।

चेतन--गुलाबी, अब तुम कोई बात लो।

गुलाबी--ले ली महराज।

चेतन--(ध्यान करके मुस्किरा कर)--बहू से इतना द्वेष 'वह मर जाय'।

गुलाबी--हाँ महराज यही बात थी। आप सचमुच अंतरजामी हैं।

चेतन--कुछ और देखना चाहती हो, बोलो 'क्या वस्तु यहाँ मंगवाऊं? मेवा, मिठाई, हीरे, मोती, इन सब वस्तुओंके ढेर लगा सकता हूँ। अमरूदके दिन नहीं हैं, जितना अमरूद चाहो मंगवा दूं। भेजो प्रभूजी, भेजो तुरत भेजो--

(मोतियों का ढेर लगता है।)

गुलाबी--आप सिद्ध हैं।

ज्ञानी--आपकी चमत्कार शक्तिको धन्य है।

चेतनदास--और क्या देखना चाहती हो? कहो यहांसे बैठे २ अंतरध्यान हो जाऊं और फिर यही बैठा हुआ मिलूं। कहो वहां उस वृक्ष के नीचे तुम्हें नैपध्यमें गाना सुनाऊं। हां यही अच्छा है। देवगण तुम्हें गाना सुनायेंगे, पर तुम्हें उनके दर्शन न होंगे। उस वृक्ष के नीचे चली जावो।