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दूसरा अङ्क

१०७

करूं कि वह मेरे साथ चलनेपर आग्रह न करे। इसके साथ ही कोई संदेह भी न हो।

राजे०--ज्ञानी सती हैं, वह किसी तरह यहां न रहेंगी। यदि आप इस पांच दिन, या एक दो महीने के लिये कहीं जायें तो वह साथ न जायेंगी लेकिन जब उन्हें मालूम होगा कि आपका स्वास्थ्य अच्छा नहीं है तब वह किसी तरह न रुकेगी। और यह बात भी है कि ऐसी सती स्त्रीको मैं दुखी नहीं करना चाहती। मैं तो केवल आपका प्रेम चाहती हूँ। उतना ही जितना ज्ञानीसे बचे। मैं उनका अधिकार नहीं छीनना चाहती। मैं उनके पैरोंकी धूलके बराबर भी नहीं हूँ। मैं उनके घरमें चोरकी भांति घुसी हूँ। उनसे मेरी क्या बराबरी। आप उन्हें दुखी किये बिना मुझपर जितनी कृपा कर सकते हैं उतनी कीजिये।

सबल--(मनमें) कैसे पवित्र विचार हैं। ऐसा नारिरत्न पाकर मैं उसके सुखसे वंचित हूँ। मैं कमल तोड़नेके लिये क्यों पानीमें घुसा जब जानता था कि वहां दलदल है। मदिरा पीकर चाहता हूं कि उसका नशा न हो।

राजेश्वरी--(मनमें) भगवन्। देखूं अपने व्रत का पालन कर सकती हूँ या नहीं। कितने पवित्र भाव हैं, कितना अग्गध प्रेम!

सबल--(उठकर) प्रिये, कल इसी वक्त फिर आऊँगा। प्रेमालिंगन के लिये चित्त उत्कंठित हो रहा है।