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संग्राम

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सबल--मेरी बातोंका ध्यान रखना। मेरे होश ठिकाने नहीं हैं। चलूं देखूं, मुआमला अभी कंचनसिंह ही तक है या ज्ञानीको भी खबर हो गई।

राजे०--आज संध्या समय आइयेगा। मेरा जी उधर ही लगा रहेगा।

सबल--अवश्य आऊंगा। अब तो मन लागि रह्यो, होनी हो सो होई। मुझे अपनी कीर्ति बहुत प्यारी है। अबतक मैंने मान-प्रतिष्ठा हीको जीवनका आधार समझ रखा था, पर अवसर आया तो मैं इसे प्रेमकी वेदीपर तरह चढ़ा दूंगा जैसे उपासक पुरुषों का चढ़ा देता है, नहों जैसे कोई ज्ञानी पार्थिव वस्तुओं को लात मार देता है।

(जाता है)