पृष्ठ:संग्राम.pdf/१२७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
संग्राम

११२

यहां गांवमें आदमी नहीं मिलते। सच मानों कुछ नहीं तो एक हजार मील तो होंगे। रात दिन उनकी चिमनियोंसे धुआं निकला करता है। ऐसा जान पड़ता है राक्षसों की फौज मुंहसे आग निकालती आकाशसे लड़ने जा रही है। आखिर निराश होकर वहांसे चला आया। गाड़ीमें एक बाबूजीसे बातचीत होने लगी। मैंने सब रामकहानी उन्हें सुनाई। बड़े दयावान आदमी थे। कहा किसी अकबार में छपा दो कि जो उनका पता बता देगा उसे ५०) इनाम दिया जायगा। मेरे मनमें भी बात जम गई। बाबूजी हीसे मसौदा बनवा लिया और यहां गाड़ीसे उतरते ही सीधे अकबारके दफ्तरमें गया। छपाईका दाम देकर चला आया। पांचवें दिन वह चपरासी यहां आया जो मुझसे खड़ा बातें कर रहा था। उसने रत्ती-रत्ती सब पता बता दिया। हलधर न कलकत्ता गया है न बम्बई, यहीं हिरासतमें है। वही कहावत हुई गोदमें लड़का सहरमें ढिंढोरा।

मंगरू—हिरासतमें क्यों है?

फत्तू—महाजनकी मेहरबानी और क्या। माघ-पूसमें कंचन सिंहके यहांसे कुछ रुपये लाया था। बस नादिहन्दीके मामले में गिरफ्तार करा दिया।

हरदास—उनके रुपये तो यहां और कई आदमियोंपर आते हैं, किसीको गिरफतार नहीं कराया। हलधरपर ही क्यों