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संग्राम

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फत्तू--कोई ढाई सौ होंगे। थोड़ी थोड़ी मदद कर दो तो आज ही हलधरको छुड़ा लूं। मैं बहुत जेरबारीमें पड़ गया हूँ नहीं तो तुम लोगोंसे न मांगता।

मंगरू-–भैया, यहाँ रुपये कहां, जो कुछ लेई पूंजी थी वह बेटीके गौनेमें खर्च हो गई। उसपर पत्थरने और भी चौपट कर दिया।

सलोनी--बनेके सीथो सब होते हैं, बिगड़ेका साथी कोई नहीं होता?

मँगरू--जो चाहे समझो, पर मेरे पास कुछ नहीं है।

हरदास--अगर १०,२०) दे भी दें तो कौन जल्दी मिले जाते हैं। बरसोंमें मिलें तो मिलें। उसमें सबसे पहले अपनी जमा लेंगे, तब कहीं औरोंको मिलेगा।

मंगरू--भला इस दौड़धूप में तुम्हारे कितने रुपये लगे होंगे?

फत्तू--क्या जाने, मेरे पास कोई हिसाब-किताब थोड़ा ही है?

मँगरू--तब भी अन्दाजसे?

फत्तू--कोई १००) लगे होंगे।

मँगरू--(हरदासको कनखियोंसे देखकर) बिचारा हलधर तो बिना मौत मर गया। १००) इन्होंने चढ़ा दिये, १५०) महाजनके होते हैं, गरीब कहाँतक भरेगा?