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दूसरा अङ्क

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फत्तू--मुसीबतमें जो मदद की जाती है वह अल्लाह की राहमें की जाती है। उसे कर्ज नहीं समझा जाता।

हरदास--तुम अपने १००) तो सीधे ही कर लोगे?

सलोनी--(मुंह चिढ़ाकर) हाँ दलालीके कुछ पैसे तुझे भी मिल जायंगे। मुंह धो रखना। हाँ बेटा, उसे छोड़ाने के लिये २५०) की क्या फिकर करोगे? कोई महाजन खड़ा किया है?

फत्तू--नहीं काकी, महाजनोंके जाल में न पड़ूंगा। कुछ तुम्हारी बहूके गहने पाते हैं वह गिरो रख दूंगा। रुपये भी उसके पास कुछ-न-कुछ निकल ही आयेंगे। बाकी रुयये अपने दोनों नोट बेंचकर खड़े कर लूंगा।

सलोनी--महीने ही भरमें तो तुझे फिर बैल चाहने होंगे।

फत्तू-–देखा जायगा। हलधरके बैलोंसे काम चलाऊँगा।

सखोनी--बेटा तुम तो हलधरके पीछे तबाह हो गये।

फत्तू--काकी, इन्हीं दिनोंके लिये तो छाती फाड़ २ कमाने हैं? और लोग थाने अदालतमें रुपये बर्बाद करते हैं। मैंने तो एक पैसा भी बर्बाद नहीं किया। हलधर कोई गैर तो नहीं है, अपना ही लड़का है। अपना लड़का इस मुसीबतमें होता तो उसको छुड़ाना पड़ता न। समझ लूँगा अपनी बेटीके निकाहमें लग गये।

सलोनी-(हरदासको ओर देखकर) देखा, मर्द ऐसे होते