पृष्ठ:संग्राम.pdf/१३१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
संग्राम

११६

हैं। ऐसे ही सपूतोंके जन्मसे माताका जीवन सुफल होता है। तुम दोनों हलधरके पट्टीदार हो, एक ही परदादाके परपोते हो। पर तुम्हारा लोहू सफेद हो गया है। तुम तो मनमें खुश होगे कि अच्छा हुआ बह गया, अब उसके खेतोंपर हम कबजा कर लेंगे।

हरदास--काकी, मुँह न खुलवाओ। हमें कौन हलधरसे वाह-वाही लूटनी है, न एकके दो वसूल करने हैं, हम क्यों इस झमेले में पढ़ें। यहाँ न ऊधोका लेना, न माधोका देना, अपने कामसे काम है। फिर हलधरने कौन यहां किसीकी मदद कर दी? प्यासों मर भी जाते तो पानीको न पूछता। हाँ दूसरोंके लिये चाहे घर लुटा देते हों।

मँगरू--हलधरकी बात ही क्या है, अभी कलका लड़का है। उसके बापने भी कभी किसीकी मदद की? चार दिनकी आई बहू है, वह भी हमें दुसमन समझती है।

सलोनी--(फत्तू से) बेटा, सांझ हुई, दिया-बत्ती करने जाती हूं। तुम थोड़ी देरमें मेरे पास आना, कुछ सलाह करूँगी।

फत्तू--अच्छा एक गीत तो सुनाती जाव। महीनों हो गये तुम्हारा गाना नहीं सुना।

सलोनी--इन दोनोंको अब कभी अपना गाना न सुना-