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दूसरा अङ्क

११७

ऊँगी।

हरदास--लो हम कानों में उँगली रखे लेते हैं।

सलोनी--हां, कान खोलना मत।

(गाती है)

ढूंढ फिरी सारा संसार, नहीं मिला कोई अपना।
भाई भाई बैरी है गये, बाप हुआ जमदूत॥
दया धरमका उठ गया डेरा, सज्जनता है सपना।
नहीं मिला कोई अपना॥

(जाती है)