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नवा दृश्य
(स्थान--मधुबन,हलधरका मकान, गाँवके लोग जमा हैं।
समय--ज्येष्ठकी सन्ध्या।)

हलधर--(बाल बढ़े हुए, दुर्बल, मलिन मुख) फत्तू काका, तुमने मुझे नाहक छुड़ाया, वही क्यों न घुलने दिया। अगर मुझे मालूम होता कि घर की यह दसा है तो उधरसे ही देश-विदेशकी राह लेता, यहां अपना काला मुँह दिखाने न आता। मैं इस औरतको पतिव्रता समझता था। देवी समझकर उसकी पूजा करता था। पर यह नहीं जानता था कि वह मेरे पीठ फेरते ही यों मेरे पुरखाओंके माथेपर कलंक लगायेगी। हाय!

सलोनी--बेटा, वह सचमुच देवी थी ऐसी पतिवरता नारी मैं ने नहीं देखी। तुम उसपर सन्देह करके उसपर बड़ा अन्याय कर रहे हो। मैं रोज रातको उसके पास सोती थी। उसकी आखें रातकी रात खुली रहती थीं। करवटें बदला करती। मेरे बहुत कहने-सुनने पर कभी-कभी भोजन बनाती थी, पर दो