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दूसरा अङ्क

१२१

कानूनको क्यों बुरा कहूँ। जैसा संसार वैसा व्यवहार।

फत्तू--बस यही बात है जैसा संसार वैसा व्यवहार। धनी लोगोंके हाथमें अखतियार है। गरीबोंको सताने के लिये जैसा कानून चाहते हैं बनाते हैं। बैठो, नाई बुलाये देता हूं बाल बनवा लो।

हलघर--नहीं काका, अब इस घरमें न बैठूंगा। किसके लिये घरवारके झमेलेमें पडूं। अपना पेट है, उसकी क्या चिन्ता। इस अन्यायी संसारमें रहने का जी नहीं चाहता। ढाई सौ रुपयोंके पीछे मेरा सत्यानास हो गया। ऐसा परबस होकर जिया ही तो क्या। चलता हूँ, कहीं साधु-बैरागी हो जाऊंगा, मांगता खाता फिरूंगा।

हरदास--तुम तो साधु वैरागी हो जावोगे? यह रुपये कौन भरेगा?

फत्तू--रुपये पैसेकी कौन बात है, तुमको इससे क्या मतलब? यह तो आपसका व्यवहार है, हमारी अटकपर तुम काम आये, तुम्हारी अटकपर हम काम आयेंगे। कोई लेन-देन थोड़ा ही किया है!

सलोनी--इसकी बिच्छूकी भांति डंक मारनेकी आदत है।

हलधर-नहीं इसमें बुरा माननेकी कोई बात नहीं है। फत्तू काका, मैं तुम्हारी नेकीको कभी भूल नहीं सकता। तुमने जो