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संग्राम

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कुछ किया यह अपना बाप भी न करता। जबतक मेरे दममें दमः है तुम्हारा और तुम्हारे खानदानका गुलाम बना रहूँगा। मेरा घर द्वार, खेत बारी, बैल बधिये, जो कुछ है सब तुम्हारा है, और मैं तुम्हारा गुलाम हूँ। बस अब मुझे बिदा करो, जीता रहूँगा तो फिर मिलूंगा नहीं तो कौन किसका होता है। काकी, जाता हूं, सब भाइयोंको राम राम!

फत्तू--(रास्ता रोककर गदगद कण्ठसे) बेटा, इतना दिल छोटा न करो। कौन जाने, अल्लाताला बड़ा कारसाज है, कहीं बहूका पता लग ही जाय। इतने अधीर होनेकी कोई बात नहीं है।

हरदास--चार दिन में तो दूसरी सगाई हो जायगी।

हलधर--भैया, दूसरी सगाई अब उस जनममें होगी। इस जनममें तो अब ठोकर खाना ही लिखा है। अगर भगवानको यह न मंजूर होता तो क्या मेरा बना बनाया घर उजड़ जाता?

फत्तू--मेरा तो दिल बार बार कहता है कि दो-चार दिनमें राजेश्वरीका पता जरूर लग जायगा। कुछ खाना बनावो, खावो, सवेरे चलेंगे फिर इधर-उधर टोह लगायेंगे।

हरदास--पहले जाके तालाबमें अच्छी तरह असनान कर लो। चलूं जानवर हरसे आ गये होंगे।

(सब चले जाते हैं।)