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दूसरा अङ्क

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हलधर--यह घर फाड़े खाता है, इसमें तो बैठा भी नहीं जाता। इस वक्त काम करके आता था तो उसकी मोहनी मूरत देखकर चित्त कैसा खिल जाता था। कंचन, तूने मेरा सुख हर लिया, तूने मेरे घरमें आग लगा दी। ओहो, वह कौन उजली साड़ी पहने उस घरमें खड़ी है। वही है, छिपी हुई थी। खड़ी है, आती नहीं। (उस घरके द्वारपर जाकर) राम! राम! कितना भरम हुआ, सनकी गांठ रखी हुई है। अब उसके दर्शन फिर नसीब न होंगे। जीवनमें अब कुछ नहीं रहा। हा, पापी, निर्दयी! तूने सर्वनाश कर दिया, मुट्ठी भर रुपयोंके पीछे! इस अन्यायका मजा तुझे चखाऊंगा। तू भी क्या समझेगा कि गरीबोंका गला काटना कैसा होता है.........

(लाठी लेकर घरसे निकल जाता है)