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दसवाँ दृश्य

(स्थान--गुलावीका घर, समय--प्रातःकाल।)

गुलाबी--जो काम करने बैठती है उसीकी हो रहती है। मैंने घरमें झाड़ू लगाई, पूजाके बासन धोये, तोतेको चारा खिलाया, गाय खोली उसका गोबर उठाया, और यह महारानी अभी पाँच सेर गेहूँ लिये जांत पर औंघ रही है किसी काममें इसका जी नहीं लगता। न जाने किस घमंडमें भूली रहती है। वापमें ऐसा कौन सा दहेज था कि किसी धनिकके घर जाती। कुछ नहीं यह सब तुम्हारे सिर चढ़नेका फल है। औरतको जहाँ मुंह लगाया कि उसका सिर फिरा। फिर उसके पाँव जमीनपर नहीं पड़ते। इस जातको तो कभी मुंह लगाये ही नहीं। चाहे कोई बात भी न हो पर उसका मान मरदन नित्य करता रहे।

भृगु--क्या करूं अम्माँ, सब कुछ करके तो हार गया। कोई बात सुनती ही नहीं। ज्योंही गरम पढ़ता हूँ रोने लगती