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पहलादृश्य

(प्रभात का समय, सूर्यकी सुनहरी किरणें खेतों और वृक्षोंपर पड़

रही हैं। वृक्षपुंजों में पक्षियों का कलरव हो रहा है। वसंत
ऋतु है। नई-नई कोपलें निकल रहा हैं। खेतोंमें
हरियाली छाई हुई है। कहीं-कहीं सरसों भी फूल

रही हैं। शीतबिंदु पौधोंपर चमक रहे हैं।)

हलघर––अब और कोई बाधा न पड़े तो अबकी उपज अच्छी होगी। कैसी मोटी-मोटी बालें निकल रही हैं।

राजेश्वरी––यह तुम्हारी कठिन तपस्याका फल है।

हलधर––मेरी तपस्या कभी इतनी सफल न हुई थी। यह सब तुम्हारे पौरे की बरकत है।

राजे॰––अबकीसे तुम एक मजूर रख लेना। अकेले हैरान हो जाते हो।

हलधर––खेत ही नहीं हैं। मिलें तो अकेले इसके दुगुने जोत सकता हूँ।