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दूसरा अङ्क

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हो। सौदे सुलुफ़में दो चार रुपये कभी मिल जाते हैं तो भङ्ग बूटी, पानपत्ते का खर्च चलता है।

गुलाबी--जाकर चुड़ेलसे कह दे पानी-वानी रखे, नहाऊँ, नहीं तो ठाकुर के यहां कैसे जाऊंगी। सारे दिन चक्काके नामको रोया करेगी क्या?

भृगु-अम्मां, तुम्ही कहो। मेरा कहना न मानेगी।

गुलाबी--हां तू क्यों कहेगा। तुझे तो उसने भेड़ बना लिया है। उंगलियोंपर नचाया करती है। न जाने कौनसा जादू डाल दिया है कि तेरी मति ही हर गई। जा ओढ़नी ओढ़ के बैठ।

(बहू के पास जाती है।)

क्योंरे सारे दिन चक्कीके नाम को रोयेगी या और भी कोई काम है?

चम्पा--क्या चार-हाथ पैर कर लूं। क्या यहां सोई हूँ।

गुलाबी--चुप रह, डायन कहींकी, बोलने को मरी जाती है। सेर भर गेहूँ लिये बैठी है। कौन लड़के वाले रो रहे हैं कि उनके तेल उबटनमें लगी रहती है। घड़ी रात रहे क्यों नहीं उठती। बांझिन, तेरा मुंह देखना पाप है।

चम्पा--इसमें भी किसीका बस है? भगवान नहीं देते तो क्या अपने हाथोंसे गढ़ लूं।

गुलाबी--फिर मुंह नहीं बन्द करती चुड़ेल। जीभ कत-